30 July, 2011

व्यर्थ अपड़ाना किये--

हम इश्क में मरते रहे,  तुम दुश्मनी माना किये |
आसमाँ झुकता गया पर, शीश तुम ताना किये ||


ताकीद भी हम,  दोस्तों की रख के आये ताक पर--
जिच्च थोड़ी थी, मगर हम  आस में आना किये ||


तागपाटा  साथ  लेकर,  हूँ यहीं तसदीक करले
नाजनीं नाजिर बना ले, जो नफ़र माना किये ||


नकफूल का न कर निरादर, इल्तिजा पर गौर करले
हुश्न  कर  रविकर  हवाले ,  क्यूँ  मुकर जाना  किये |


दिग्दाह  के  मानिंद  ये  दिल-दाह  देखो  दिलरुबा 
मानता  सब  शर्त  रविकर  व्यर्थ  अपड़ाना  किये ||
तसदीक = सत्यापन                                   ताकीद  = चेतावनी
इल्तिजा = निवेदन                                     तागपाट = विवाह का गहना 
 नफ़र = अनुचर                                          नाजिर =  देखभाल करने वाला

19 comments:

  1. हम इश्क में मरते रहे, तुम दुश्मनी माना किये |
    आसमाँ झुकता गया पर, शीश तुम ताना किये ||
    ....जब इश्क पर जोर नहीं चलता है तो यही होता है....
    बहुत बढ़िया प्रस्तुति ..
    शुभकामनायें !

    ReplyDelete
  2. सबसे बडा शुक्र है, जो आपने नीचे तीन शब्दों के अर्थ समझा दिये है।

    ReplyDelete
  3. रविशंकर जी,
    बहुत ही खूबसूरत लिखा है आपने....

    एक दो शब्दों के अर्थ और लिख दिए होते तो और अच्छा लगता पढते हुए....

    ReplyDelete
  4. भाई रविकर जी मै तो पहली बार यहाँ आया और देखता , पढ़ता रहा गया , टिपण्णी बाद में :)

    ReplyDelete
  5. हम इश्क में मरते रहे, तुम दुश्मनी माना किये |
    आसमाँ झुकता गया पर, शीश तुम ताना किये ||

    बहुत जोरदार रविकर जी

    ReplyDelete
  6. बढ़िया प्रस्तुति ...

    ReplyDelete
  7. arth samjhne ke bad...........ye hi kahege

    waha bahut khub

    ReplyDelete
  8. हम इश्क में मरते रहे, तुम दुश्मनी माना किये |
    आसमाँ झुकता गया पर, शीश तुम ताना किये ||

    bahut badiya prastuti ........badhai

    ReplyDelete
  9. हुश्न कर "रविकर "हवाले क्यों मुकर जाना किए.यही तो सारी ज़द्दोज़हद है . कृपया यहाँ ज़रूर पधारें ,टिपियाएँ ,कृतार्थ करें .http://kabirakhadabazarmein.blogspot.com/

    ReplyDelete
  10. सुंदर प्रस्तुति. आभार.
    सादर,
    डोरोथी.

    ReplyDelete
  11. ताग- पाटा का भी मतलब लिख दो भैया .

    ReplyDelete
  12. हम इश्क में मरते रहे, तुम दुश्मनी माना किये |
    आसमाँ झुकता गया पर, शीश तुम ताना किये ||
    गज़ब!

    ReplyDelete
  13. तागपाटा साथ लेकर, हूँ यहीं तसदीक करले
    नाजनीं नाजिर बना ले, जो नफ़र माना किये ||
    बेहतरीन गजल ...शुभकामनायें !!!

    ReplyDelete
  14. वाह बहुत खूब कहा है |
    बधाई
    आशा

    ReplyDelete
  15. रविशंकर जी शब्दों के अर्थ बताने के लिए शुक्रिया...
    आज फिर एक बार और पढ़ा आपको..

    ReplyDelete
  16. कमाल की गहराई और खूबसूरती है आपकी रचनाओं में ....
    शुभकामनायें आपको !

    ReplyDelete