18 July, 2011

बनती है उनकी दस्तूरी ||

नौ महिने रख कोख में,  सात  घुमाई   गोद,
अन्नाशन संस्कार का, मनता मंगल-मोद ||१||

हिजड़े न समझे मज़बूरी |
बनती है उनकी दस्तूरी ||   

लाव  मदरसे  के लिए,  पक्का  दस्तावेज,
अनुमंडल आफिस गया, उत्थे खाली मेज ||२||

बाबू  की  देखी  मगरूरी |
बनती है उनकी दस्तूरी ||

सत्यापन  नौकरी  का,  आया  थाना  बीच,
एक बुलौवा भेज के, लिया आठ सौ खींच ||३|| 

महकी क्यूँ मृग की कस्तूरी |
बनती  है  उनकी  दस्तूरी ||

 चतुर  नजूमी  खोलता,  भावी  जीवन-जाल |
 जर-जमीन जोरू मिले,  काटे जमकर  माल ||४||

बात  बोलते बड़ी जरुरी  |
बनती है उनकी दस्तूरी ||

11 comments:

  1. सयापन नौकर का, आया थाना बीच, एक बुलौवा भेज के, िलया आठ सौ खींच ||३|
    Vyawastha ka wastavik chitran kiya hai aapne.
    Badhai.

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  2. सुन्दर सटीक रचना....

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  3. बात बोलते बड़ी जरुरी |
    बनती है उनकी दस्तूरी ||
    सही कहा रविकर जी ये तो आज के युग में सभी की बनती है
    सुन्दर कटाक्ष बधाई

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  4. दस्तूरी की मजबूरी खूब रही,

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  5. बहुत सुन्दर्।

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  6. बहुत सुन्दर्।

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  7. सुन्दर सटीक रचना,बहुत सुन्दर

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  8. यथार्थ का काव्यमय सुन्दर वैचारिक प्रस्तुतिकरण...हार्दिक शुभकामनायें।

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  9. 'द्स्तुरी' शब्द के इर्द गिर्द बुनी गयी अभिनव प्रस्तुति| ये शब्द हिंदुस्तान में सब जगह नहीं बोला जाता| इस का अर्थ होता है 'दलाली उर्फ कमीशन'|

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  10. आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल शुक्रवार के चर्चा मंच पर भी की गई है!
    यदि किसी रचनाधर्मी की पोस्ट या उसके लिंक की चर्चा कहीं पर की जा रही होती है, तो उस पत्रिका के व्यवस्थापक का यह कर्तव्य होता है कि वो उसको इस बारे में सूचित कर दे। आपको यह सूचना केवल इसी उद्देश्य से दी जा रही है! अधिक से अधिक लोग आपके ब्लॉग पर पहुँचेंगे तो
    चर्चा मंच का भी प्रयास सफल होगा।

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