28 July, 2011

सत्ता से बुड़-बक टकराए

बादल से बादल टकराए,
ठनके से आफत आ जाए |


पत्थर सा टकरा कर चकमक,
कैसे दावानल भड़काए |


नंगों से नंगा भिड़ जाए,
गारी सुन मनुआ घबराए |


सत्ता से बुड़-बक टकराए,
दर-दर भटके फिर पगलाए ||

6 comments:

  1. अच्छी बात कही है।
    सच्ची बात कही है।

    ReplyDelete
  2. बादल से बादल टकराए, ठनके से आफत आ जाए | पथर सा टकरा कर चकमक, कैसे दावानल भड़काए |

    bahut sundar aur saarthak panktiya.
    Badhai sweekaar kare.

    ReplyDelete
  3. रविकर जी आपका लिखा नित नूतन और सुन्दर लगता है .इस मर्तबा पहले से भी ज्यादा सटीक मिसायल हैं ये दोहे -बूमरांग से वार करतें हैं अपने लक्ष्य पर .

    ReplyDelete
  4. bahut khub kaha hai ravishankar jibahut khub kaha hai ravishankar ji

    ReplyDelete
  5. रविकर जी ...सत्य वचन !!!बहुत खूब ...शुभकामनाएं !!!!

    ReplyDelete