06 September, 2011

विकीलीक्स पगलाया है


                    (घनाक्षरी)

ब्यूटी पार्लर जाय के, जन्मदिन मनाय के
अरबों गिफ्ट पाय के, मन हरसाया है |

सर्वजन कहाय के, गाँव-गाँव लडाय के
बहुजन डराय  के, राज-काज पाया है |

रसोइयाँ पटाय के, जूती जेट से लाय के,
मूरत लगवाय के, पार्क बनवाया है |

विकीलीक्स बताय के, मिसिर का उकसाय के,
पी एम् बरगलाय के, पूरा  पगलाया  है ||

11 comments:

  1. खुद को बहके के जनता को ललचाय के,
    दलित राग गाये के,सत्ता सुख पाया है.
    बहुत सही प्रस्तुति रविकर जी

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  2. सोइयाँ पटाय के, जूती जेट से लाय के,
    मूरत लगवाय के, पार्क बनवाया है |

    सही कटाक्ष ..

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  3. Main to aachar sahinta se bandha hu
    isliye kuch nahi kahunga.
    Aapko khud hi samajhana hoga.
    Post ki b..a..d..h..a..a..i..

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  4. बहुत सटीक कटाक्ष ।

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  5. ताली रोकने का मन नहीं कर रहा...

    क्या लिखा है आपने....क्या कहूँ....

    बस लाजवाब...लाजवाब...लाजवाब...

    सबकुछ इतने में ही समेट दिया आपने...

    इस धारदार रचना के लिए आभार स्वीकारें...

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  6. आपको 'सर्वजन' नहि सुहाया है,यहि बरे बहुतै लतियाया है !

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  7. सच बोलने, बताने वाले को तो ऐसा ही कहा जाता है।

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  8. माया की माया माया ही जाने ...

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  9. रविकर जी
    ....क्या लिखते हैं आप...धारदार रचना!

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