मूर्ख-दिवस
कल्लू कौआ अति-सुबह, कहे मुबारक मित्र ।
हंसी उडाता जा रहा, हरकत करे विचित्र ।
हरकत करे विचित्र, कहे दिन तेरा भोंदे ।
पा लल्लू का गिफ्ट, सुबह गू-गोबर खोदे ।
और शाम तक सात, बार बन बैठा उल्लू ।
फेस सेम-टू-सेम, दिखे खुद मुझ सा कल्लू ।।
कौआ दिवस या उल्लू दिवस
ReplyDeleteरविकर जी देखिए तो जरा....
ReplyDeleteअरे यह क्या रहा है आज!
उच्चारण क्लिक करता हूँ तो
रविकर खुल जाता है....
हाहाहाहाहाहाहा..........
सुप्रभात...! रामनवमी के साथ-साथ अन्तर्राष्टीय मूर्ख दिवस की बधाई भी स्वीकार करें।
कभी-कभी कौवे और उल्लू भी अच्छे लगते हैं...!
ReplyDeleteभई वाह ... सामयिक छंद ... मज़ा आ गया ..
ReplyDeleteफेस सेम-टू-सेम, दिखे खुद मुझ सा कल्लू । हा हा हा ।
ReplyDeleteमूर्खदिवस की बधाई !!!!
कल्लू कौआ अति-सुबह, कहे मुबारक मित्र ।
ReplyDeleteहंसी उडाता जा रहा, हरकत करे विचित्र ।ati sundar....
आज सुबह पांच बजे का हाल है |
Deleteआज तो दिन में भी उल्लू दिख रहे हैं / बन रहे हैं |
अन्य दिनों में तो बेचारे दिन में दीखते ही नहीं ||
सादर
उल्लू रोज होते हैं दिखते भी हैं रोज
ReplyDeleteहमें याद रखेंगे तो नहीं करेंगे खोज
नहीं करेंगे खोज और कविता बनायेंगे
कौवे भी हैं पास उनसे भी मिल पायेंगे।
शाम तक सात, बार बन बैठा उल्लू ।
ReplyDeleteफेस सेम-टू-सेम, दिखे खुद मुझ सा कल्लू ।।
बहुत खूब लिखा है आपने ... बेहतरीन प्रस्तुति ।
कौंवे उल्लू आज हैं, आस पास से लुप्त।
ReplyDeleteएक ठिकाना सुना हैं, दिल्ली मे है गुप्त।।
सादर :))
कल्लू कौआ अति-सुबह, कहे मुबारक मित्र ।
ReplyDeleteहंसी उडाता जा रहा, हरकत करे विचित्र ।
बहुत मजेदार.
intersting
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