03 April, 2012

चूमा-चाटी कर रहे, उत्सव में पगलान

बैशाख और मेघा / माघ
मेघा को ताका करे, नाश-पिटा बैसाख ।
करे भांगड़ा तर-बतर, दुष्ट मारता आँख ।
दुष्ट मारता आँख, मुटाता जाय दुबारा ।
किन्तु सुवन-वैशाख, नहीं मेघा को प्यारा ।
मेघा ठेंग दिखाय, कहे मत मुझको ताको ।
बार बार वैशाख, किन्तु छेड़े मेघा को ।।

चित्रा (चैत्र)
चित्रा के चर्चा चले, घर-आँगन मन हाट ।
ज्वार जवानी जिंदगी, रही पसीना चाट ।
रही पसीना चाट, चूड़ियाँ साड़ी कंगन ।
जोह रही है बाट, खाट पर पसरी बनठन।
फगुनाहटी सुरूर, मिटाता बलमा आके ।
पोर-पोर में दर्द, रात-दिन हो चित्रा के ।।

आश्विन और कार्तिक
चूमा-चाटी कर रहे, उत्सव में पगलान ।
डेटिंग-बोटिंग में पड़े, रेस्टोरेंट- बगान ।
रेस्टोरेंट- बगान, निभाएं कसमे-वादे ।
पूजा का माहौल, प्रेम-रस भक्ति मिला दे ।
नव-दुर्गा आगमन, दिवाली जोड़ा घूमा ।
पा लक्ष्मी वरदान, ख़ुशी से माथा चूमा ।।

2 comments:

  1. वाह बहुत उपयोगी प्रस्तुति!
    अब शायद 3-4 दिन किसी भी ब्लॉग पर आना न हो पाये!
    उत्तराखण्ड सरकार में दायित्व पाने के लिए भाग-दौड़ में लगा हूँ!
    बृहस्पतिवार-शुक्रवार को दिल्ली में ही रहूँगा!

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  2. बहुत बढ़िया रविकर जी. आप पर सरस्वती देवी की असीम कृपा है.

    आभार आपका.

    ...और हाँ,शास्त्रीजी को मत परेशान करना,वो अपनी जुगाड़ में लगे हैं !

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