राना जी छत पर पड़े, गढ़ में बड़े वजीर |
नई नई तरकीब से, दे जन जन को पीर |
दे जन जन को पीर, नीर गंगा जहरीला |
मँहगाई *अजदहा, समूचा कुनबा लीला |
रविकर लीला गजब, मरे कुल नानी नाना |
बजट बिराना पेश, देखता रहा बिराना ||
अजदहा=बड़ा अजगर
बिराना=पराया / मुँह चिढाना
बिराना=पराया / मुँह चिढाना
जीना मुश्किल हो गया, बोला घपलेबाज |
पहले जैसा ना रहा, यह कांग्रेसी राज | यह कांग्रेसी राज, नियम से करूँ घुटाला | खुल जाती झट पोल, पडा इटली से पाला | बनवाया उस रोज, आय व्यय का तख्मीना | जीते चालीस चोर, रोज मरती मरजीना || बजट = आय व्यय का तख्मीना
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बहुत अच्छा व्यंग्य है !
ReplyDeleteकरकश करकच करकरा, कर करतब करग्राह ।
ReplyDeleteतरकश से पुरकश चले, डूब गया मल्लाह ।
डूब गया मल्लाह, मरे सल्तनत मुगलिया ।
जजिया कर फिर जिया, जियाये बजट हालिया ।
धर्म जातिगत भेद, याद आ जाते बरबस ।
जीता औरंगजेब, जनेऊ काटे करकश
बढ़िया व्यंग्य .
ReplyDeleteसटीक व्यंग !!
ReplyDeleteजीना मुश्किल हो गया, बोला घपलेबाज |
ReplyDeleteपहले जैसा ना रहा, यह कांग्रेसी राज |
करारा व्यंग. सुंदर प्रस्तुति.