घटना पर घटना घटे, घटे नहीं सन्ताप | थे तो लाख उपाय पर, बाँट रहे दो लाख | बाँट रहे दो लाख, नहीं बच्चे बच पाए | मुआवजा ऐलान, दुशासन साख बचाए | बच्चे छोड़ें जगत, छोड़ते वे नहिं पटना | बके बड़ा षड्यंत्र, विपक्षी करते घटना || |
मन्त्रालय रख तीस ठो, नीति नियम नीतीश |
धूल धूसरित हो रहे, खा कर मरते बीस |
खा कर मरते बीस, बाढ़ ने कितने खाये |
इधर धमाका होय, उधर नक्सल धमकाए |
बची रहे सरकार, फेल हो जाए तंत्रा |
लम्बी चौड़ी खीस, बनाया असली मंत्रा ||
अफरा-तफरी मच गई, खा के मिड-डे मील |
अफसर तफरी कर रहे, बीस छात्र लें लील | बीस छात्र लें लील, ढील सत्ता की दीखे | मुवावजा ऐलान, यही इक ढर्रा सीखे | आने लगे बयान, पार्टियां बिफरी बिफरी | किन्तु जा रही जान, मची है अफरा तफरी || |
लोकतन्त्र का सौदा महंगा है
ReplyDeleteएक से एक बढ़ कर बेईमान !
ReplyDeleteबेहद दुखद है....
ReplyDeleteबढ़िया अभिव्यक्ति रविकर जी...
सादर
अनु
मार्मिक घटना की सच्चाई लिख दी है ...
ReplyDeleteबहुत दर्दनाक घटना हालात की बढियां अभिव्यक्ति .......!!
ReplyDeleteअत्यंत यथार्थपरक रचना ....
ReplyDeleteWonderfully expressed !
ReplyDeleteइस बेहद दुखद घटना पर आपकी सार्थक अभिव्यक्ति ।
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