07 July, 2013

यही बुद्ध की शान, घाव खाकर भी ताजे -

वामयान विध्वंस कर, तालिबान हकलान |
बोध-गया में आज फिर, कौन घुसा नादान |

कौन घुसा नादान, मसीहा शांत विराजे |
यही बुद्ध की शान, घाव खाकर भी ताजे |

कर देते हैं माफ़, माफ़ ना खुदा करेगा |
हो जाओगे साफ़, सजा वो ही अब देगा ||

4 comments:

  1. सटीक व् सार्थक अभिव्यक्ति .आभार

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  2. आज राक्षसी,अपने बच्चे,छिपा रही,मानवी नज़र से
    मानव कितना गिरा,विश्व में, क्या तेरी वन्दना करूँ !

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  3. सटीक और सार्थक प्रस्तुति ,बहुत सुन्दर रचना सही कहा आप ने ,हकीकत को वयां करती रचना

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