(1)
ओसारे में बुद्धि-बल, मढ़िया में छल-दम्भ |
नहीं गाँव की खैर तब, पतन होय आरम्भ |
पतन होय आरम्भ, बुद्धि पर पड़ते ताले |
बल पर श्रद्धा-श्राप, लाज कर दिया हवाले |
तार-तार सम्बन्ध, धर्म- नैतिकता हारे |
हुआ बुद्धि-बल अन्ध, भजे रविकर ओसारे ||
(2)
माने मन की बात तो, आज मौज ही मौज |
कल की जाने राम जी, आफत आये *नौज |
आफत आये *नौज, अक्ल से काम कीजिए |
चुन रविकर सद्मार्ग, प्रतिज्ञा आज लीजिये |
रहे नियंत्रित जोश, लगा ले अक्ल दिवाने |
आगे पीछे सोच, कृत्य मत कर मनमाने ||
*ईश्वर ना करे -
आगे पीछे सोच, लगा ले अक्ल दिवाने...सुंदर
ReplyDeleteमनमानी का फल कब अच्छा हुआ है ।
ReplyDeleteमनमाने लोग, मनमाना समाज।
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ReplyDeleteतार-तार सम्बन्ध, धर्म- नैतिकता हारे |
हुआ बुद्धि-बल अन्ध, भजे रविकर ओसारे ||
बहुत बढ़िया रविकर भाई -
जो नित ध्यावे तमो गुणन को ,
वो कहलावे आशाराम .
क्या बात है। बेहद सत्य पूर्ण दोहे
ReplyDeleteलाज़वाब
सादर