02 September, 2013

ओसारे में बुद्धि-बल, मढ़िया में छल-दम्भ-

(1)
ओसारे में बुद्धि-बल, मढ़िया में छल-दम्भ |
नहीं गाँव की खैर तब, पतन होय आरम्भ |

पतन होय आरम्भ, बुद्धि पर पड़ते ताले |
बल पर श्रद्धा-श्राप, लाज कर दिया हवाले |

तार-तार सम्बन्ध, धर्म- नैतिकता हारे |
हुआ बुद्धि-बल अन्ध, भजे रविकर ओसारे ||

(2)
माने मन की बात तो, आज मौज ही मौज |
कल की जाने राम जी, आफत आये *नौज |

आफत आये *नौज, अक्ल से काम कीजिए |
चुन रविकर सद्मार्ग, प्रतिज्ञा आज लीजिये |

रहे नियंत्रित जोश, लगा ले अक्ल दिवाने |
आगे पीछे सोच, कृत्य मत कर मनमाने ||

*ईश्वर ना करे -

5 comments:

  1. आगे पीछे सोच, लगा ले अक्ल दिवाने...सुंदर

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  2. मनमानी का फल कब अच्छा हुआ है ।

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  3. मनमाने लोग, मनमाना समाज।

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  4. तार-तार सम्बन्ध, धर्म- नैतिकता हारे |
    हुआ बुद्धि-बल अन्ध, भजे रविकर ओसारे ||

    बहुत बढ़िया रविकर भाई -

    जो नित ध्यावे तमो गुणन को ,

    वो कहलावे आशाराम .

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  5. क्या बात है। बेहद सत्य पूर्ण दोहे
    लाज़वाब
    सादर

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