21 September, 2013

देह देहरी दुर्ग, सुरक्षित शिशु-अबलायें -

कुण्डलियाँ छंद

जन्नत बन जाए जहाँ, बसते बाल-बुजुर्ग ।
इनके रहमो-करम से, देह देहरी दुर्ग ।

देह देहरी दुर्ग, सुरक्षित शिशु-अबलायें ।
इनका अनुभव ज्ञान, टाल दे सकल बलाएँ ।

हाथ परस्पर थाम, मान ले रविकर मिन्नत ।
बाल-वृद्ध सुखधाम, बनायें घर को जन्नत।। 




3 comments:

  1. वाह रे बाल-वृद्ध सुखदाम। आज तेरी बहुत कमी खल रही है।

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  2. क्या बात है रविकर भाई तस्वीर भी बहुत तेज़ बोल रही है :

    दुश्मनों को भी गले से लगाना नहीं भूले ,

    हम अपने बुजुर्गों का ज़माना नहीं भूले .

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  3. बाल वृध्द सुखधाम बनाये गर को जन्नत. क्या सटीक बात कही है रविकर जी। चित्र बहुत ही भाया।

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