बुरे हाल हैं। यहां तक की हम लोगों को साहित्य की अलख इसी कम्प्यूटर के माध्यम से जगानी पड़ रही है। जबकि पुस्तकों का साथ कितना प्यारा था।
समय के अंतराल को समझा ओर महसूस किया है आपने ...
वाह! भाई
समय तब कछु और थासमय अभी कछु औरतब थी दादी नानी अब आया का ठौर।
भोजन डिब्बा बंद, अक्श आया में रब का |कंप्यूटर में कैद, अधिकतर अबका तबका ||बहुत सही बात कही है समय के साथ बहुत कुछ बदल रहा है स्वीकार करने के आलावा कोई चारा भी नहीं है :) आभार, छुट्टियों का मजा लीजिये !
तब का बचपन और था, अब का बचपन और |दादी की गोदी मिली, नानी से दो कौर |sunder panktiyan
बुरे हाल हैं। यहां तक की हम लोगों को साहित्य की अलख इसी कम्प्यूटर के माध्यम से जगानी पड़ रही है। जबकि पुस्तकों का साथ कितना प्यारा था।
ReplyDeleteसमय के अंतराल को समझा ओर महसूस किया है आपने ...
ReplyDeleteवाह! भाई
ReplyDeleteसमय तब कछु और था
ReplyDeleteसमय अभी कछु और
तब थी दादी नानी
अब आया का ठौर।
भोजन डिब्बा बंद, अक्श आया में रब का |
ReplyDeleteकंप्यूटर में कैद, अधिकतर अबका तबका ||
बहुत सही बात कही है समय के साथ बहुत कुछ बदल रहा है
स्वीकार करने के आलावा कोई चारा भी नहीं है :)
आभार, छुट्टियों का मजा लीजिये !
तब का बचपन और था, अब का बचपन और |
ReplyDeleteदादी की गोदी मिली, नानी से दो कौर |
sunder panktiyan