09 October, 2013

लेकिन बचपन आज, महज दिखता दो साला-

तब का बचपन और था, अब का बचपन और |
दादी की गोदी मिली, नानी से दो कौर |


नानी से दो कौर, दौर वह मस्ती वाला | 
लेकिन बचपन आज, महज दिखता दो साला | |


भोजन डिब्बा बंद, अक्श आया में रब का |
कंप्यूटर में कैद, अधिकतर अबका तबका ||

....

6 comments:

  1. बुरे हाल हैं। यहां तक की हम लोगों को साहित्‍य की अलख इसी कम्‍प्‍यूटर के माध्‍यम से जगानी पड़ रही है। जबकि पुस्‍तकों का साथ कितना प्‍यारा था।

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  2. समय के अंतराल को समझा ओर महसूस किया है आपने ...

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  3. समय तब कछु और था
    समय अभी कछु और
    तब थी दादी नानी
    अब आया का ठौर।

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  4. भोजन डिब्बा बंद, अक्श आया में रब का |
    कंप्यूटर में कैद, अधिकतर अबका तबका ||
    बहुत सही बात कही है समय के साथ बहुत कुछ बदल रहा है
    स्वीकार करने के आलावा कोई चारा भी नहीं है :)
    आभार, छुट्टियों का मजा लीजिये !

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  5. तब का बचपन और था, अब का बचपन और |
    दादी की गोदी मिली, नानी से दो कौर |
    sunder panktiyan

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