12 December, 2013

कुतिया भी देखी नहीं, कुतिया के मन भाय-



केंचुल कामी का चुवा, धरे केंचुवा यौनि |
द्विलिंगी गुट *गेगले, गन्दी करते औनि |

गन्दी करते औनि, बनाये तन मन रोगी |
पशुचर्या पशु-काम, हुवे हैं पशुवत भोगी |

सरेआम व्यवहार, गेंगटे रविकर गेंदुल |
रख उरोज, पर, दन्त, गेगले छोड़ें केंचुल ||
गेगले=*मूर्ख 
गेंदुल=चमगादड़ 
गेंगटे=केकड़े 

कुक्कुर के पीछे लगा, कुक्कुर कहाँ दिखाय |
कुतिया भी देखी नहीं, कुतिया के मन भाय |

कुतिया के मन भाय, नहीं पाठा को देखा |
पढ़ते उलटा पाठ, बदल कुदरत का लेखा |

पशु से ही कुछ सीख, पाय के विद्या वक्कुर |
गुप्त कर्म रख गुप्त, अन्यथा सीखें कुक्कुर ||



2 comments:

  1. देश को धुँधले आशा-दीप के लिये वधाई !
    केंचुल कामी का चुवा, धरे केंचुवा यौनि | क्या ही सभ्न्ग्पद यमक ! अदभुत !!

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