माने शरमाने लगे, सिर्फ स्वार्थमय भोग |
शारीरिक सुख-साधते, जाने-माने लोग |
जाने-माने लोग, कराएं परहित धंधे |
उच्चकोटि के ढोंग, फँसाये कोटिक अंधे |
बन बैठे भगवान्, बनायें विविध बहाने |
तन मन धन का दान, करोड़ों लगे कमाने ||
कुण्डलियाँ
(१)
दीखे अ'ग्रेसर खड़ा, छात्रा छात्र तमाम ।
करें एकश: अनुकरण, आवश्यक व्यायाम ।
आवश्यक व्यायाम, भंगिमा किन्तु अनोखी ।
कई डुबाएं नाम, हरकतें नइखे चोखी ।
वहीँ ईंट पर बाल, लगन से रविकर सीखे ।
ऊँची भरे उड़ान, सहज अनुकर्ता दीखे ॥
बढ़िया प्रस्तुति।
ReplyDeleteउच्चकोटि के ढोंग, फँसाये कोटिक अंधे |
ReplyDeleteव वाह . . . वा वाह . . .
बहुत सुंदर !
ReplyDeleteगूढार्थ व्यंजना के लिए आप की पहँचान की एक इकाई है यह रचना भी !
ReplyDeleteतहलका .कॉम पर कटाक्ष :
ReplyDeleteमाने शरमाने लगे, सिर्फ स्वार्थमय भोग |
शारीरिक सुख-साधते, जाने-माने लोग |
सुन्दर चित्र के साथ तादात्म्य बनाई सुन्दर रचना भारत के नौनिहाल ,करें इस्कूल के लिए ताकझांक .
ReplyDelete(१)
दीखे अ'ग्रेसर खड़ा, छात्रा छात्र तमाम ।
करें एकश: अनुकरण, आवश्यक व्यायाम ।
आवश्यक व्यायाम, भंगिमा किन्तु अनोखी ।
कई डुबाएं नाम, हरकतें नइखे चोखी ।
वहीँ ईंट पर बाल, लगन से रविकर सीखे ।
ऊँची भरे उड़ान, सहज अनुकर्ता दीखे ॥
(स्कूल )