यदा-यदा बढ़ता भरम, बढ़ता असुरोत्पात |
जाति-धर्म क्षेत्रीयता, आये याद जमात |
आये याद जमात, मात खा जाए सज्जन |
गिरवी रख जज्बात, करे ज्यों खुद को अर्पण |
नौटंकी प्रारम्भ, दृश्य में देख फायदा |
अंध गुफा में ठेल, सिखाये आप कायदा ||
अब चुनाव आसन्न, व्यस्त फिर भारतवासी
(१)
खाँसी की खिल्ली उड़े, खीस काढ़ते आप |
खुन्नस में मफलर कसे, गया रास्ता नाप |
गया रास्ता नाप, नाव मझधार डुबाये |
सहा सर्द-संताप, गर्म लू जल्दी आये |
अब चुनाव आसन्न, व्यस्त फिर भारतवासी |
जन-गण दिखें प्रसन्न, हुई संक्रामक खाँसी॥
खांसी तो मेरी भी एक महीने से संक्रामक हो गई है। जबर्दस्त।
ReplyDeleteबढ़िया प्रस्तुति
ReplyDelete