माँ का सुंदर वर्णन ।
वाह बहुत सुन्दर ...गूँथ स्वयं को रोज, बनाती माता रोटी...
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
गूँथ स्वयं को रोज, बनाती माता रोटी |बहुत सुन्दर
रोज गुंथना वाकई।
रोज परिवार के पेट के वास्ते क्या नहीं करती माँ!बहुत सुन्दर
कह रविकर कविराय, बात करता नहिं छोटी | गूँथ स्वयं को रोज, बनाती माता रोटी |वाह रविकर भाई क्या बात है।
कभी न करती आह, हमेशा भूख मिटाती |रहती बेपरवाह, आंच से नहिं अकुलाती । छोटी रचना बड़ी बात ..माँ स्नेह से जो भी छू ले परसबन जाए जय श्री राधे भ्रमर ५
शुक्रिया आपकी निरंतर टिप्पणियों का कैसे हो भाई साहब (रविकर भाई ,मैं यहां अपलैंड व्यू ,कैण्टन ,मिशिगन ,में हूँ नवंबर मध्य तक .
माँ का सुंदर वर्णन ।
ReplyDeleteवाह बहुत सुन्दर ...गूँथ स्वयं को रोज, बनाती माता रोटी...
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ReplyDeleteगूँथ स्वयं को रोज, बनाती माता रोटी |
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
रोज गुंथना वाकई।
ReplyDeleteरोज परिवार के पेट के वास्ते क्या नहीं करती माँ!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
कह रविकर कविराय, बात करता नहिं छोटी |
ReplyDeleteगूँथ स्वयं को रोज, बनाती माता रोटी |वाह रविकर भाई क्या बात है।
कभी न करती आह, हमेशा भूख मिटाती |
ReplyDeleteरहती बेपरवाह, आंच से नहिं अकुलाती ।
छोटी रचना बड़ी बात ..माँ स्नेह से जो भी छू ले परस
बन जाए
जय श्री राधे
भ्रमर ५
शुक्रिया आपकी निरंतर टिप्पणियों का कैसे हो भाई साहब (रविकर भाई ,मैं यहां अपलैंड व्यू ,कैण्टन ,मिशिगन ,में हूँ नवंबर मध्य तक .
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