22 August, 2016
वह सागर सा गर शांत नही
धरती धरती गर धीर नहीं, सहती रहती यदि पीर नही ।
वह सागर सा गर शांत नही, नटनागर सा गमभीर नही।
कर शोषण दोहन मानव तो पहुँचाय रहा कम पीर नहीं।
जल वायु नहीं फलफूल नहीं, मिलते जड़ जीव शरीर नहीं।|
2 comments:
सुशील कुमार जोशी
22 August 2016 at 06:00
बहुत बढ़िया ।
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दिगम्बर नासवा
23 August 2016 at 00:30
बहुत कमाल है सर ...
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बहुत बढ़िया ।
ReplyDeleteबहुत कमाल है सर ...
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