22 August, 2016

वह सागर सा गर शांत नही


धरती धरती गर धीर नहीं, सहती रहती यदि पीर नही ।

वह सागर सा गर शांत नही, नटनागर सा गमभीर नही।
कर शोषण दोहन मानव तो पहुँचाय रहा कम पीर नहीं।
जल वायु नहीं फलफूल नहीं, मिलते जड़ जीव शरीर नहीं।|

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