03 June, 2018

चंद चुनिंदा मित्र रख, जिंदा रख हर शौक-

चंद चुनिंदा मित्र रख, जिंदा रख हर शौक।
हारे तब बढ़ती उमर, करे जिक्र हर चौक।|

कह दो मन की बात तो, हो फैसला तुरंत।
वरना बढ़ता फासला, हो रिश्ते का अंत।।

अपनी हो या आपकी, हँसी-खुशी-मुस्कान।
रविकर को लगती भली, प्रभु-वंदना समान।।

रखी ऐस ट्रे बोतलें, पियें ग्लास दर ग्लास।
लेकिन तेरा हुश्न यह, उड़ा रहा उपहास।।

कर न सके पहचान माँ, खोये यदि नवजात।
पहचाने निज शिशु मगर, यद्यपि अन्य जमात।।

वह रोटी लेता कमा, उसका सारोकार।
किन्तु साथ परिवार के, खाता कभी-कभार।।

युद्ध महाभारत छिड़ा, कौरव-पाँडव व्यस्त।
लड़े शिखंडी भी जहाँ, अवसरवादी मस्त।।

युद्ध महाभारत छिड़ा, बटे गृहस्थ पदस्थ।
लड़े शिखण्डी भी जहाँ, अवसरवाद तटस्थ।।

सीख निभाना मू्र्ख से, मूर्ख बनाना सीख।
झिंगालाला जिंदगी, दीन-दुखी मत दीख।।

करे उजागर जो कमी, मीन-मेख में तेज।
रविकर कन्नी काटकर, उसको लानत भेज।।

बिन चंदा बेचैन कवि, नेता, बाल, चकोर।
रविकर चारो ताकते, बस चंदा की ओर।।

नहीं याद जाये कभी, न तो जाय फरियाद।
नहीं सजन आये कभी, न तो आय अनुनाद।।

ताक रहे बच्चे बड़े, जब चंदा की ओर।
हर चकोर तब हो रहा, रविकर चंदाखोर।।

वृक्ष कटा कागज बना, उसपर लिखा सँदेश |

"वृक्ष बचाओ" वृक्ष बिन, बिगड़ेगा परिवेश ||

सीख निभाना मू्र्ख से, मूर्ख बनाना सीख।
झिंगालाला जिंदगी, दीन-दुखी मत दीख।।

करें आह पर वो अहा, वही पुरानी रीति।
मौज करे वो ले मजा, हाय-हाय री प्रीति।।

धत् तेरे की जिंदगी, जहर पिये तू नित्य।
भली मृत्यु करती मगर, एक बार यह कृत्य।

नहीं याद जाये कभी, न ही गयी फरियाद।
नहीं सजन आये कभी, न ही सुना अनुनाद।।

चढ़कर पारा काँच को, दर्पण रहा बनाय।
रविकर दर्पण दे दिखा, झट पारा चढ़ जाय।।

मिले और बिछुड़े जगत, बढ़िया रीति-रिवाज़।
मिलो न बिछड़ो तुम कभी, क्यों मेरे सरताज़।।

नीरसता तो मृत्यु की, जिभ्या पर आसीन।
रविकर जीवन यदि रसिक, कौन सके फिर छीन।।

जोश शान्ति हिम्मत सहित, बुझता दीप समृद्ध।
किन्तु दीप उम्मीद का, करे कार्य कुल सिद्ध।।

खलता जब खुलते नहीं, रविकर सम्मुख होंठ |
देह-पिंड में क्यूँ सिमट, खुद को लेता गोंठ ||

सुता सयानी हो रही, मातु हुई चैतन्य |
साम दाम भय भेद से, सीख सिखाती अन्य ||

यमुना बैरिन क्यूँ हुई, मथुरा बसते श्याम ।
विरह वियोगिन बन पड़ी, छूटे काम तमाम ।।

जो गिरि पर झुककर चढ़े, रविकर करे कमाल।
शिखर फतह कर अकड़कर, वही उतरता ढाल।।

इधर एक डिगरी लिए, रविकर दिखे मिजाज़।
पैतालिस डिगरी उधर, क्यों न करे वह नाज।।

रचें सार्थक काव्य नित, करे काम की बात ।
दुनिया में खुश्बू भरे, दे नफरत को मात ।

बाबा बापू चल बसे, बसे अनोखे पूत ।
संस्कार की छत ढहे, अजब गजब करतूत ।।

चिंगारी भड़का गई, जली बुझी दिल-आग।
जमी समय की राख है, मत कुरेद कर भाग ।।

जल-धारा अनुकूल पा, चले जिंदगी नाव ।
धूप-छाँव लू कँपकपी, मिलते गए पड़ाव ।।

दिल से निकली बात जब, जाए ज्यादा दूर ।
मचे तहलका जगत में, नव-गुल खिले जरूर ।

महलों में बिगड़ें बड़े, बच्चों की क्या बात ।
नया घोसला ले बना, मार महल को लात ।

सुता बने भगिनी बुआ, मौसी पत्नी माय ।
नए नए नित नाम पा, यह दुनिया महकाय ।।

पटाक्षेप होने चला, सुख दुःख का यह खेल ।
करवट देखो ऊंट की, मत कर ठेलमठेल ।।

चूहे पहले भागते, डूबे अगर जहाज ।
गिरती दिखे दिवाल जो, करें न ईंटें  लाज ।

जाग चुका अब हर युवा, करे पतंजलि पेस्ट।
बिना डेढ़ जीबी पिये, कभी न लेता रेस्ट।।

बन्धक बने विचार कब, पाते ही जल-खाद।
होते पुष्पित-पल्लवित, बनते जन-संवाद ||

तेरे जाने मात्र से, कहाँ मिलेगा चैन।
याददाश्त जाये चली, या मूंदे दो नैन।

अगर विटामिन डी घटा, सकें हड्डियाँ टूट।
नियमित सूर्य-प्रणाम कर, सूर्य-रश्मियां लूट।।

2 comments:

  1. जाग चुका अब हर युवा, करे पतंजलि पेस्ट।
    बिना डेढ़ जीबी पिये, कभी न लेता रेस्ट।।

    सुपर

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