28 March, 2011

चूँ-चूँ ने चोंचों से चुन-चुन के फेंके

गुज़र से गए दर्दो-एहसास सारे, तुम्हारे सहारे 
गुजरने लगे रात-दिन फिर हमारे, तुम्हारे सहारे 
उड़ा न सके राख, दिल के जले की, बवंडर  नकारे
कोई ज्वार-भांटा न आया सदी से समंदर किनारे 
हारे को ' रविकर'  कि जीता वही जो सिकंदर पुकारे
चूँ-चूँ ने  चोंचों से चुन-चुन के फेंके, जो जलते अंगारे 
धड़कने लगा दिल, न हिम्मत ये हारे न तुमको बिसारे 
गुजरने लगे रात-दिन फिर हमारे, तुम्हारे सहारे

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