19 June, 2011

कांगू मच्छर और भांजू मक्खी : आरोप-प्रत्यारोप

मच्छरों  ने  मक्खियों  को  खुब  लताड़ा |
मक्खियाँ  क्या  छोड़  देतीं,  बहुत  झाड़ा ||

चूस  करके  खून   तुम  शेखी   बघारो |
गुन-गुनाकर गीत,  सोते  जान  मारो ||
इस तरह से  दिग्विजय  घंटा  करोगे |
सोये  हुए  इंसान  पर   टंटा  करोगे ||
मर्म-अंगों  पर  जहर  के   डंक   मारो   |
चढ़ चला ज्वर जोरका मष्तिष्क फाड़ो ||
पहले सुबह या  शाम   ही   काटा किये |
अब रात  भर  डेंगू - दगा बांटा   किये ||
रक्त-मोचित   सब   चकत्ते   नोचते  हैं  |
नष्ट  करने   के    तरीके  खोजते  हैं ||
तालियों के बीच तू  जिस दिन फँसेगा |
जिन्दगी  से हाथ धो, किसपर हँसेगा ||
नीम  के मारक  धुंवे  से न बचेगा ---   
राम  का  मैदान  हो  या  सुअर  बाड़ा ||
मच्छरों  ने  मक्खियों  को  खुब  लताड़ा |
मक्खियाँ  क्या  छोड़  देतीं,  खूब  झाड़ा ||

मच्छरों ने मक्खियों  की पोल खोली |
मार कर   लाखों-करोड़ों  आज बोली ||
गन्दगी  देखी  नहीं  कि  बैठ  जाती -
और दुनिया की सड़ी हर चीज खाती ||
"मारते"  तुझको   निठल्ले बैठ  खाली -
"बैठने  से   नाक  पर"  जाती  हकाली ||
कालरा   सी   तू   भयंकर   महामारी |
अड़ा करके टांग    करती भूल भारी  ||

मधु की मक्खी आ गईं रोकी लड़ाई |
बात  रानी ने  उन्हें  अपनी बताई ---
फूल-पौधों  से  बटोरूँ  मधुर मिष्टी  |
मजे लेकर खा सके सम्पूर्ण सृष्टि  ||
स्वास्थ्यवर्धक मै उन्हें माहौल देती |
किन्तु बदले में नहीं कुछ और लेती || 
किन्तु  दोनों शत्रु मिलकर साथ बोले--  
मत पढ़ा उपकार का हमको पहाड़ा ||
मच्छरों  ने  मक्खियों  को  खुब  लताड़ा |
मक्खियाँ  क्या  छोड़  देतीं,  खूब  झाड़ा ||



8 comments:

  1. तालियों के बीच तू जिस दिन फँसेगा |
    जिन्दगी से हाथ धो, किसपर हँसेगा ||
    बहुत सुन्दर व् सटीक

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  2. काव्य में
    मनोरंजन के साथ
    सन्देश भी है .

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  3. Rochak vartalaap aasani se bahut kuchh kah rahi hai..achchhi lagi.aabhar

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  4. शालिनी कौशिक जी, दानिश जी
    एवं
    अमृता तन्मय जी बहुत बहुत धन्यवाद ||

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  5. रक्त-मोचित सब चकत्ते नोचते हैं |
    नष्ट करने के तरीके खोजते हैं ||
    तालियों के बीच तू जिस दिन फँसेगा |
    जिन्दगी से हाथ धो, किसपर हँसेगा ||

    बहुत बढ़िया लगे संवाद....

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  6. वीना जी !
    बहुत बहुत धन्यवाद ||

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  7. यही कविता थी! अच्छा है, खूब लिखिए। जब कोई न हो तो उसपर शोर मचाने से क्या होगा? मैंने कहा है वहाँ नहीं लिखूंगा।

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  8. चंदन कुमार मिश्र जी !

    आनंदित हुआ ||
    बहुत बहुत -आभार ||

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