पञ्च-रत्न
शादी होती सोम से, शांता का आभार |
कौला दालिम खुश हुए, पाती रूपा प्यार ||
समाचार लेते रहे, शांता सृंगी व्यस्त |
दुरानुभूती माध्यम, सूर्यदेव जब अस्त ||
दुरानुभूती माध्यम, सूर्यदेव जब अस्त ||
परम बटुक को मिल रहा, राजवैद्य का नेह |
साधक आयुर्वेद का, करता अर्पित देह ||
कौशल्या उत्सुक बड़ी, कन्याशाला घूम |
मन को हर्षित कर गई, बालाओं की धूम ||
गोदी की इक बालिका, आकर करे कमाल |
संस्कारित शिक्षित करे, दो सौ ललना पाल ||
हर बाला इक वंश है, फूले-फले विशाल |
होवे देवी मालिनी, हरी भरी हर डाल ||
शाळा को हर एक वर्ष, सौ पण का अनुदान |
कौशल्या कहकर चली, बिटिया बड़ी महान ||
कौशल्या उत्सुक बड़ी, कन्याशाला घूम |
मन को हर्षित कर गई, बालाओं की धूम ||
गोदी की इक बालिका, आकर करे कमाल |
संस्कारित शिक्षित करे, दो सौ ललना पाल ||
हर बाला इक वंश है, फूले-फले विशाल |
होवे देवी मालिनी, हरी भरी हर डाल ||
शाळा को हर एक वर्ष, सौ पण का अनुदान |
कौशल्या कहकर चली, बिटिया बड़ी महान ||
राम-लखन के साथ में, शांता समय बिताय |
दूल्हा-दुल्हन की डगर, हक़ से छेके जाय ||
स्वर्णाभूषण त्याग दी, आडम्बर सब त्याग |
भौतिकता से है नहीं, दीदी को अनुराग ||
दीदी बोली कीजिये, शर्त दूसरी पूर |
शाळा हरदिन जायगी, रूपा सखी जरूर ||
जिम्मेदारी दीजिये, खींचों नहीं लकीर |
नारी में शक्ती बड़ी, बदल सके तक़दीर ||
कन्याएं दो सौ वहां, अभिभावक दो एक |
शाला की चिंता हरे, रूपा मेरी नेक ||
बना व्यवस्था चल पड़ी, वह शाळा की ओर |
आत्रेयी को सौंपती, पञ्च-रत्न की डोर ||
आचार्या करने लगी, प्रश्न-पत्र तैयार |
कई चरण की जाँच से, होना होगा पार ||
नियत तिथि पर आ रहे, लेकर सब उम्मीद |
कन्याशाला में टिके, पढ़ उद्धृत-ताकीद ||
पहला दिन आराम का, हुई ना कोई जाँच |
नगर भ्रमण कोई करे, कोई पुस्तक बाँच ||
कोई बैठा बाग़ में, कोई गंगा तीर |
खेल करे मैदान में, कई सयाने वीर ||
मिताहार कोई वहां, मिताचार से प्यार |
कुछ तो भोजन भट्ट हैं, और कई लठमार ||
सूची इक जारी हुई, बाइस वापस जाव |
बाकी इक्कावन बचे, काया जाँच कराव ||
तेरह इसमें छट गए, अड़तिस गंगा तीर |
डूबी पानी में उधर, ग्यारह की तकदीर ||
सत्ताईस की लेखनी, बाइस हों उत्तीर्ण |
पाँच जनों के हो रहे, ऐसे भाग-विदीर्ण ||
राज महल में मिल गया, सबको एकल कक्ष |
अपने अपने विषय में, थे ये पूरे दक्ष ||
बाइस पहले जो छटे, शाला के प्रति द्वेष |
शिक्षा के प्रति थी नहीं, उनमें रुची विशेष ||
राजकाज के काम दो, दिए एक से जाँय |
तीन दिनों में एक को, आओ सब निपटाय ||
प्रतिवेदन प्रस्तुत करो, लिखकर वापस आय |
एक परीक्षा बचेगी, तेरह को बिलगाय ||
गुप्तचरों की सूचना, वा प्रस्तुत आलेख |
महामंत्री ने चुने, प्रतिभागी नौ देख ||
अगले दिन दरबार में, बैठे अंग नरेश |
नौ के नौ आयें वहां, धर दरबारी भेष ||
साहस संयम शिष्टता, अनुकम्पा औदार्य |
मितव्ययी निर्बोधता, न्याय-पूर्ण सद्कार्य ||
क्षमाशीलता सादगी, सहिष्णुता गंभीर |
सच्चाई प्रफुल्लता, निष्कपटी मन धीर ||
स्वस्ती मेधा शुद्धता, हो चारित्रिक ऐक्य |
दानशीलता आस्तिक, अग्र-विचारी शैक्य ||
सर्वगुणी सब विधि भले, सब के सब उत्कृष्ट |
अंगदेश को गर्व है, गर्व करे यह सृष्ट ||
जाँच-परखकर कर रहे, सबको यहाँ नियुक्त |
एक वर्ष के बाद में, होंय चार जन मुक्त ||
तीन मास बीते यहाँ, आया फिर वैशाख |
शांता सृन्गेश्वर चली, मन में धीरज राख ||
कन्याओं से मिल लिया, पुष्पा-पुत्तुल पास |
रमणी को देकर चली, एक हिदायत ख़ास ||
बटुक रमण फिर से चला, दीदी को ले साथ |
शिक्षा विधिवत फिर करे, जय हो भोले नाथ ||
नई कथा पढ़ने के लिए मिल रही है...आभार|
ReplyDeleteआपकी प्रस्तुति पढ़ पढ़ कर मन नही भरता जी.
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.
मौका मिलने पर फिर से पढूंगा.
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा आज के चर्चा मंच पर भी की गई है!
ReplyDeleteयदि किसी रचनाधर्मी की पोस्ट या उसके लिंक की चर्चा कहीं पर की जा रही होती है, तो उस पत्रिका के व्यवस्थापक का यह कर्तव्य होता है कि वो उसको इस बारे में सूचित कर दे। आपको यह सूचना केवल इसी उद्देश्य से दी जा रही है! अधिक से अधिक लोग आपके ब्लॉग पर पहुँचेंगे तो चर्चा मंच का भी प्रयास सफल होगा।
बड़ी ही सुन्दर कविता.
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