18 January, 2013

जन गण मन अनुभूति तरावट -

दोहा +
मूर्धन्य-दुर्लभ सुलभ, सजती विषद लकीर ।
कर्ण-प्रिये अनुनासिका, वर्णित वर्ण-*शरीर ।
आकर्षित नित करे कसावट ।
जन गण मन अनुभूति तरावट ।।

रोला+
वर्णित वर्ण-*शरीर, कथ्य को शिल्प गढ़ा है ।
ओष्ठ्य, दन्त, तालव्य, कंठ से तेज बढ़ा है ।
 दर्शनीय अति-सुगढ़ बनावट ।
 जन गण मन अनुभूति तरावट ।।

अग्र-पश्व लघु-दीर्घ, घोष-अघोष तमाम है ।
महाप्राण नि:श्वास, रविकर अल्प विराम है ।
अलंकार-पट-पुष्प सजावट ।
जन गण मन अनुभूति तरावट ।।
दोहा +
सरस लचीली दिव्यतम, हो अपवाद-विहीन ।
देवि श्रेष्ठतम जगत में, माने विज्ञ-प्रवीन ।।
 शुभ मत सम्मत-शास्त्र लिखावट
 जन गण मन अनुभूति तरावट ।।
 मूर्धन्य=मस्तक से उत्पन्न 
 वर्णित=प्रशंसित 
 शरीर=कलेवर

7 comments:



  1. ✿♥❀♥❁•*¨✿❀❁•*¨✫♥
    ♥सादर वंदे मातरम् !♥
    ♥✫¨*•❁❀✿¨*•❁♥❀♥✿



    ♥ आकर्षित नित करे कसावट ।
    जन गण मन अनुभूति तरावट ।।

    ♥ दर्शनीय अति-सुगढ़ बनावट ।
    जन गण मन अनुभूति तरावट ।।

    ♥ अलंकार-पट-पुष्प सजावट ।
    जन गण मन अनुभूति तरावट ।।

    ♥ शास्त्र-सम्मत शुभ लिखावट ।
    जन गण मन अनुभूति तरावट ।।

    आऽऽहा हाऽऽऽ हऽऽऽ !
    लाजवाब !

    आदरणीय रविकर जी
    आपकी लेखनी कमाल करती रहती है ...
    :)
    नमन !!


    गणतंत्र दिवस की अग्रिम बधाई और मंगलकामनाएं …
    ... और शुभकामनाएं आने वाले सभी उत्सवों-पर्वों के लिए !!
    :)
    राजेन्द्र स्वर्णकार
    ✿◥◤✿✿◥◤✿◥◤✿✿◥◤✿◥◤✿✿◥◤✿◥◤✿✿◥◤✿

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    1. शुभ मत सम्मत-शास्त्र लिखावट |
      aabhaar

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  2. बहुत सुन्दर सरजी .प्रांजल भाषा .

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  3. Virendra Sharma ‏@Veerubhai1947
    ram ram bhai मुखपृष्ठ शनिवार, 19 जनवरी 2013 कहीं आप युवा कांग्रेस की राहुल सेना तो नहीं ? http://veerubhai1947.blogspot.in/
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  4. ram ram bhai
    मुखपृष्ठ

    शनिवार, 19 जनवरी 2013
    कहीं आप युवा कांग्रेस की राहुल सेना तो नहीं ?

    अमर सिंह राठौर का, मिले शर्तिया शीश |

    सुनो भतीजे रामसिंह, चाची को है रीस |

    चाची को है रीस, बिना सिर की यह काया |

    जाने पापी कौन, आज हमको बहकाया |

    जो भी जिम्मेदार, काट उसका सिर लाओ |

    नहीं मिले *मकु ठौर, नहीं राठौर कहाओ || *कदाचित

    हमें वक्तव्य नहीं चार सिर चाहिए .पर

    कुंडलीकार रविकर भाई

    शालिनी जी कौशिक ,आपने बिना सन्दर्भ को तौले हुए ही लिखा है जो भी लिखा है .हेमराज की माँ और पत्नी भारत सरकार और

    भारत

    की सर्वोच्चसत्ता के शौर्य के प्रतीक सेनापति पे दवाब

    नहीं डाल रहीं था सिर्फ

    अपने बेटे का सिर वापस मांग रही थीं . ताकि शव की कोई शिनाख्त तो बने .एक माँ और पत्नी के दिल से पूछो ,उन्हें कैसा लगा होगा

    बिना पहचान का शव . उसका दाह संस्कार करते वक्त कैसा लगा

    होगा .

    अगर कोई आप की नाक काटके ले जाए तो क्या आप अपनी नाक उससे वापस भी नहीं मांगेंगे .

    और हेमराज कोई आमने सामने के युद्ध में ललकारने के बाद नहीं मारा गया था .कोहरे का लाभ उठाते हुए छलबल से उसपर हमला किया

    गया था .बेशक इससे हेमराज की शहादत का वजन कम नहीं होता लेकिन यह हमला भारत के स्वाभिमान पे हमला था .जिसे

    पाक ने जतला दिया -हम तुम्हें कुछ नहीं समझते .

    इस प्रकार की बातें कांग्रेसी ही करते हैं जिसकी सदस्यता लेने से पहले हाईकमान के पास सबको दिमाग गिरवीं रखना पड़ता है .आप जैसी

    प्रबुद्ध महिला के अनुरूप नहीं है तर्क का यह स्तर .कहीं आप युवा कांग्रेस की राहुल सेना तो नहीं ?

    एक टिपण्णी ब्लॉग पोस्ट :

    शुक्रवार, 18 जनवरी 2013

    कलम आज भी उन्हीं की जय बोलेगी ......
    कलम आज भी उन्हीं की जय बोलेगी ......
    आर.एन.गौड़ ने कहा है -
    ''जिस देश में घर घर सैनिक हों,जिसके देशज बलिदानी हों.
    वह देश स्वर्ग है ,जिसे देख ,अरि के मस्तक झुक जाते हों .''

    सही कहा है उन्होंने ,भारत देश का इतिहास ऐसे बलिदानों से भरा पड़ा है .यहाँ के वीर और उनके परिवार देश के लिए की गयी शहादत पर गर्व महसूस करते हैं .माताएं ,पत्नियाँ और बहने स्वयं अपने बेटों ,पतियों व् भाइयों के मस्तक पर टीका लगाकर रणक्षेत्र में देश पर मार मिटने के लिए भेजती रही हैं और आगे भी जब भी देश मदद के लिए पुकारेगा तो वे यह ही करेंगीं किन्तु वर्तमान में भावनाओं की नदी ने एक माँ व् एक पत्नी को इस कदर व्याकुल कर दिया कि वे देश से अपने बेटे और पति की शहादत की कीमत [शहीद हेमराज का सिर]वसूलने को ही आगे आ अनशन पर बैठ गयी उस अनशन पर जिसका आरम्भ महात्मा गाँधी जी द्वारा देश के दुश्मनों अंग्रेजों के जुल्मों का सामना करने के लिए किया गया था और जिससे वे अपनी न्यायोचित मांगे ही मनवाते थे .
    हेमराज की शहादत ने जहाँ शेरनगर [मथुरा ]उत्तर प्रदेश का सिर गर्व से ऊँचा किया वहीँ हेमराज की पत्नी व् माँ ने हेमराज का सिर वापस कए जाने की मांग कर सरकार व् सेना पर इतना अनुचित दबाव डाला कि आखिर उन्हें समझाने के लिए सेनाध्यक्ष को स्वयं वहीँ आना पड़ा .ये कोई अच्छी शुरुआत नहीं है .सेनाध्यक्ष की बहुत बड़ी जिम्मेदारी होती है और इस तरह से यदि वे शहीदों के घर घर जाकर उनके परिवारों को ही सँभालते रहेंगे तो देश की सीमाओं को कौन संभालेगा?
    यूँ तो ये भी कहा जा सकता है कि सीमाओं की सुरक्षा के लिए वहां सेनाएं तैनात हैं किन्तु ये सोचने की बात है कि नेतृत्त्व विहीन स्थिति अराजकता की स्थिति होती है और जिस पर पहले ही देश के दुश्मनों से जूझने का दबाव हो उसपर अन्य कोई दबाव डालना कहाँ तक सही है ?
    साथ ही वहां आने पर सेनाध्यक्ष को मीडिया के उलटे सीधे सवालों के जवाब देने को भी बाध्य होना पड़ा .सेना अपनी कार्यप्रणाली के लिए सरकार के प्रति जवाबदेह है न कि मीडिया के प्रति ,और आज तक कभी भी शायद किसी भी सेनाध्यक्ष को इस तरह जनता के बीच आकर सेना के बारे में नहीं बताना पड़ा .ये सेना का आतंरिक मामला है कि वे देश के दुश्मनों से कैसे निबटती हैं और उनके प्रति क्या दृष्टिकोण रखती हैं और अपनी ये योग्यतायें सेना बहुत से युद्धों में दुश्मनों को हराकर साबित कर चुकी है .

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  5. बहुत सुन्दर ..
    हम तो आप सब की प्रशंसा करने के लिए भी शब्दों को ढूँढ़ते हैं ..
    इतने उच्च कोटी के भावों को मै अपने शब्दों को अर्पित करने में अपने को असमर्थ महसूस करती हूँ ..
    सादर
    kalamdaan

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