18 February, 2013

मद्धिम रविकर तेज से , हो संध्या बेचैन-

खैनी से हो कैन्सर, बिगड़ जाय सर फेस |
सफ़र फेसबुक का करे, खुद ऐसी ही रेस |
खुद ऐसी ही रेस, फ़ैल जाती बीमारी |
देख नवल सन्देश, हुआ गुट आज हजारी |
समझदार की मौत, नजर पर रखते पैनी |
माने बीबी सौत, बनी गैया मरखैनी ||


  होली हमजोली हलफ, वेलेंटाइन पर्व ।
मस्त मदन मन मारता, मिल मौका गन्धर्व ।

मिल मौका गन्धर्व, नहीं कोई डे ऐसा ।
ना कोई त्यौहार, जगत में इसके जैसा ।

ना पूजा ना पाठ, और ना अक्षत रोली
एक अकेला पर्व, पास दिखती है होली ।।
बेटा -लेटा सुन रहा, जी टी वी पर न्यूज |
नैतिक शिक्षा से हुआ, दिल-दिमाग कुल फ्यूज |
दिल-दिमाग कुल फ्यूज, दाँत हाथी के देखे |
लम्बी लम्बी बात, किताबी इनके लेखे |
चॉपर टू-जी तोप, कोयला सभी समेटा |
यह चर्चा तकरार, समझ नहिं पाए बेटा ||
मद्धिम रविकर तेज से , हो संध्या बेचैन ।
शर्मा जाती लालिमा, बैन नैन पा सैन ।

बैन नैन पा सैन, पुकारे प्रियतम अपना ।
सर पर चढ़ती रैन, चूर कर देती सपना ।

खग कलरव गोधूलि, बढ़ा  देता है पश्चिम । 
है कुदरत प्रतिकूल, मेटता संध्या मद्धिम ।।  

7 comments:

  1. सार्थक अभिव्यक्ति,आभार.

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  2. अत्यंत सुन्दर गुरूजी | बहुत बेहतरीन |

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  3. बडी मारक रचना है,शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  4. बहुत प्यारा लिखते हैं आप ...
    आभार भाई जी !

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