04 February, 2013

खरी-खरी खोटी-खरी, खरबर खबर खँगाल-




खरी-खरी खोटी-खरी, खरबर खबर खँगाल ।
फरी-फरी फ़रियाँय फिर, घरी-घरी घंटाल ।

घरी-घरी घंटाल, मीडिया माथा-पच्ची ।
सिद्ध होय गर स्वार्थ, दबा दे ख़बरें सच्ची ।

परमारथ का ढोंग, बे-हया देखे खबरी ।
करें शुद्ध व्यवसाय,  आपदा क्यूँकर अखरी ??

  खबर खभरना बन्द कर, ना कर खरभर मित्र ।
खरी खरी ख़बरें खुलें, मत कर चित्र-विचित्र ।

मत कर चित्र-विचित्र, समझ ले जिम्मेदारी ।
खम्भें दरकें तीन, बोझ चौथे पर भारी ।

सकारात्मक असर, पड़े दुनिया पर वरना ।
तुझपर सारा दोष,  करे जो खबर खभरना ।।

खबर खभरना  = मिलावटी खबर 

  जली दिमागी बत्तियां, किन्तु हुईं कुछ फ्यूज ।
बरबस बस के हादसे, बनते प्राइम न्यूज ।
बनते प्राइम न्यूज, व्यूज एक्सपर्ट आ रहे ।
शब्द यूज कन्फ्यूज, गालियाँ साथ खा रहे ।
सड़ी-गली दे सीख, मिटाते मुंह की खुजली ।
स्वयंसिद्ध *सक सृज्य , गिरे उनपर बन बिजली ।।
 *शक्ति

5 comments:

  1. आदरणीय गुरुदेव श्री प्रणाम, बेहद सुन्दर कुण्डलिया हार्दिक बधाई स्वीकारें.

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  2. सिद्ध सच्‍चाई, गजब चौपाई।

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  3. बहुत सच्ची कुंडलियां । इतने बडे देश में कुछ भी अच्छा और सकारात्मक ना हो रहा हो यह बात पचती नही । पर मीडिया तो वही बतायेगा जो सनसनीखेज हो या फिर पेड न्यूज़ हो ।

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