22 February, 2013

कल गुरू को मूँदा था, आज चेलों ने रूँदा है-



लगा ले मीडिया अटकल, बढ़े टी आर पी चैनल ।
 जरा आतंक फैलाओ, दिखाओ तो तनिक छल बल ।।

फटे बम लोग मर जाएँ, भुनायें चीख सारे दल ।
धमाके की खबर तो थी, कहे दिल्ली बताया कल ॥

 हुआ है खून सादा जब, नहीं कोई दिखे खटमल ।
घुटाले रोज हो जाते, मिले कोई नहीं जिंदल ।।

कहीं दोषी बचें ना छल, अगर सत्ता करे बल-बल ।
नहीं आश्वस्त हो जाना, नहीं होनी कहीं हलचल ॥ 

जवानी धर्म से भटके, हुआ वह शर्तिया "भटकल" ।
मरे जब लोग मेले में, उड़ाओ रेल मत नक्सल||


पिलपिलाया गूदा है । 
छी बड़ा बेहूदा  है । । 

मर रही पब्लिक तो क्या -
आँख दोनों मूँदा है ॥ 

जा कफ़न ले आ पुरकस 
इक फिदाइन कूदा है । 

कल गुरू को मूँदा था 
आज चेलों ने रूँदा है ॥

पाक में करता अनशन-
मुल्क भेजा फालूदा है ॥

 लोग मरते तो हैं । 
जख्म भरते तो हैं ॥ 

बम फटे हैं बेशक -
एलर्ट करते तो हों । 

पब्लिक परेशां लगती 
कष्ट हरते तो हैं ॥ 

 रोज गीदड़ भभकी 
दुश्मन डरते तो हैं । 

 दोषी पायेंगे सजा 
हम अकड़ते तो हैं  । 

 बघनखे शिवा पहने -
गले मिलते तो हैं ॥  

कंधे मजबूत हैं रविकर-
लाश धरते तो हैं ।






7 comments:

  1. कल गुरू को मूँदा था
    आज चेलों ने रूँदा है ॥
    बहुत खूब क्या बात है आनंद आगया
    मेरी नई रचना
    खुशबू
    प्रेमविरह

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  2. बहुत सुन्दर | आभार

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  3. बहुत सटीक टिपण्णी सूचना प्रदाता मंत्रालय पर .

    लोग मरते तो हैं ।
    जख्म भरते तो हैं ॥

    बम फटे हैं बेशक -
    एलर्ट करते तो हों ।

    पब्लिक परेशां लगती
    कष्ट हरते तो हैं ॥

    रोज गीदड़ भभकी
    दुश्मन डरते तो हैं ।

    दोषी पायेंगे सजा
    हम अकड़ते तो हैं ।

    बघनखे शिवा पहने -
    गले मिलते तो हैं ॥

    कंधे मजबूत हैं रविकर-
    लाश धरते तो हैं ।

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  4. भाई रविकर जी ,रुंद -रुंद कर ,गूंथ -गूंथ कर,इअ सब को
    औकात बता दो ,हटा -हटा चश्मे इनके चेहरों से ,इन
    सबके अब होश जग दो ..

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  5. रविकर जी,
    बिटिया की शादी के कामों में अति व्यस्तता, फिर कई दिनों की बीमारी से कल ही तो निबटा हूँ |आज कुछ स्वस्ठ अनुभव कर के ब्लोप्ग पर उपस्थित होने का प्रयास है |
    अथ! क्याखूब धमाकेदार भाषा में 'वीभत्स' में ताजगी भर दी है !
    प्यार का तेरे तलबगार हूँ मैं |
    क्यों ण हो यह तेरा यार हूँ में ||
    तेरे फैज़ का असर कुछ ऐसा था-
    कि महक से आब्सार हूँ मैं !!

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  6. दूसरी रचना में तो व्यंग्य और भी चुटीला और गम्भीर है !!

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