17 April, 2013

अदा-अदालत लत-लताड़ : भोगता उपभोक्ता

सन 2003 की बात है । मोटरसाइकिल पुरानी हो गई थी । नया वाहन खरीदने की जरुरत बड़ी शिद्दत से महसूस की जाने लगी थी । मनु और शिवा नौवी कक्षा में पहुँच गए थे । स्कूल पहुंचाने और लाने में दिक्कत महसूस होने लगी थी ।  तनु भी चाहती थी कि कार खरीदी जाय । 25 अप्रैल को मारुती 8 0 0 EURO II के लिए रूपये 1.25 लाख बतौर एडवांस रिलायबुल इंडस्ट्रीज धनबाद के एजेंट तमाल घोष के पास जमा करा दिया था । लोन के फॉर्म भी भर दिए थे ।

अपने मित्र अरुण कुमार सिंह के साथ 5-6 बार शो-रूम गया किन्तु  9 मई से पहले मैं गाडी की डिलीवरी न पा सका । घर पहुंचकर बच्चों को कार में बिठाकर घूमने निकला । बच्चों ने फैन चलाने के लिए कहा । अरुण जी ने जैसे ही कार का फैन चलाया -हवा के साथ बहुत सारे कांच के टुकडे निकल कर हमारे चेहरे से टकराए । पिछली सीट पर बैठे बच्चों के चेहरे लहुलुहान हो गए । 

हम तुरंत रिलायबुल इंडस्ट्रीज धनबाद के शो रूम गए और शिकायत दर्ज कराई-तमाल घोष आये उन्होंने माफ़ी मांगी और वाहन की साफ़ सफाई के लिए वाहन को वर्कशॉप ले गए । वर्कशॉप मैनेजर मि. श्रीवास्तव ने बताया की ट्रांसपोर्टेशन में कभी-कभी विंड-स्क्रीन टूट जाती है । इसी विंड स्क्रीन के टुकड़े  हैं  ये । हमारा फोटो भी खींचा  गया -हैप्पी कस्टमर --

मुखड़े बड़े प्रसन्न थे, उत्फुल्लित थे गात । 
नई कार का आगमन,  आखिर हुआ प्रभात । 

आखिर हुआ प्रभात, मगन-मन बच्चे चढ़ते । 
लेकिन सिर मुड़वात, तड़ातड़ ओले पड़ते । 

बच्चों की क्या बात,  मातु बच्चों की उखड़े । 
देखा लहूलुहान, लाल उन सबके मुखड़े । 

3 comments:

  1. पुरानी बातें याद करके आनंद तो आता है
    अब कार बदलिये भाई...

    नई कार के लिए शुभकामनाएं

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  2. अबकी बार जब नई कार ले कर आओगे
    शो रूम में ही चलवा कर पंखा देख आओगे !

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