31 July, 2013

बाहर का उन्माद, बने अन्तर की हलचल-

चंचल मन को साधना, सचमुच गुरुतर कार्य |
गुरु तर-कीबें दें बता, करूँ निवेदन आर्य |
 
करूँ निवेदन आर्य, उतरता जाऊँ गहरे |

  जहाँ प्रबल संघर्ष, नहीं नियमों के पहरे |
 
बाहर का उन्माद, बने अन्तर की हलचल |
दे लहरों को मात, तलहटी ज्यादा चंचल ||

5 comments:

  1. बहुत प्रभावशाली.

    रामराम.

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  2. दे लहरों को मात, तलहटी ज्यादा चंचल ||

    बहुत सही रविकर जी ।

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  3. तलहटी सब जमा कर लेती है !

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  4. बहुत सुन्दर प्रस्तुति है रविकर जी .बाहर का उन्माद बने अंतर की हलचल .

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