16 December, 2013

डुबकी आप लगाय, लगा लो बस यह टोपी-

टोपी बिन पहचान में, नहीं आ रहे आप |
लगे अवांछित आम जन, अपना रस्ता नाप | 

अपना रस्ता नाप, शाप है धरती माँ का |
बको अनाप-शनाप, भिड़ेगा तब ही टाँका |

चतुर करेगा राज, होय चाहे आरोपी |
डुबकी आप लगाय, लगा लो बस यह टोपी ||

पाय खुला भू-फलक, नहीं अब "आप" छकाना -

काना राजा भी भला, हम अंधे बेचैन |
सहमत हम सब मतलबी, प्यासे कब से नैन |

प्यासे कब से नैन, सात सौ लीटर पानी |
गै पानी मा भैंस, शर्त की की नादानी |

सत्ता को अब तलक, मात्र मारा है ताना |
पाय खुला भू-फलक, नहीं अब "आप" छकाना |

2 comments:

  1. सुन्दर प्रस्तुति मारक संहारक .


    प्यासे कब से नैन, सात सौ लीटर पानी |
    गै पानी मा भैंस, शर्त की की नादानी |

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  2. विडंबना से ग्रसित हो गया है राजनीति का अखाड़ा।

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