09 November, 2017

सात वचन


चले जब तीर्थ यात्रा पर मुझे तुम साथ लोगे क्या।
सदा तुम धर्म व्रत उपक्रम मुझे लेकर करोगे क्या।
वचन पहला करो यदि पूर्ण वामांगी बनूँगी मैं

बताओ अग्नि के सम्मुख, हमेशा साथ दोगे क्या।।
सात वचन/2
कई रिश्ते नए बनते, मिले परिवार जब अपने।
पिता माता हुवे दो दो, बढ़े परिवार अब अपने।
करोगे एक सा आदर, वचन यदि तुम निभाओगे।
तभी वामांग में बैठूँ बने सम्बन्ध तब अपने।।

सात वचन/3
युवा तन प्रौढ़ता पाकर बुढ़ापा देखता आया।
यही तीनों अवस्थाएं हमेशा भोगती काया।
विकट चाहे परिस्थिति हो, करो मेरा अगर पालन।
तभी वामांग में बैठूँ, बनूँ मैं सत्य हमसाया।।

सात वचन/4
अभी तक तो कभी चिंता नहीं की थी गृहस्थी की।
हमेशा घूमते फिरते रहे तुम खूब मस्ती की।
जरूरत पूर्ति हित बोलो बनोगे आत्मनिर्भर तो
अभी वामांग में बैठूँ, शपथ लेकर पिताजी की।।

सात वचन /5
गृहस्थी हेतु आवश्यक सभी निर्णय करो मिलकर।
वचन दो मंत्रणा करके, करेंगे हर समस्या हल।
सकल व्यय-आय का व्यौरा बताओगे हमेशा तुम
वचन दो तो अभी वामांग में बैठूँ इसी शुभ पल।।

सात वचन (6)
अगर सखियों सहित बैठी नहीं मुझको बुलाओगे।
कभी भी दुर्वचन आकर नहीं कोई सुनाओगे।
जुआ से दुर्व्यसन सब से रहोगे दूर जीवन में
अभी वामांग में बैठूँ, वचन यदि यह निभाओगे।।

सात वचन (7)
पराई नारि को माता सरिस क्या देखता है मन।
रहे दाम्पत्य जीवन में परस्पर प्रेम अति पावन ।
कभी भी तीसरा कोई करे क्यों भंग मर्यादा-
वचन दो तो ग्रहण करती, अभी वामांग में आसन।।

विशुद्ध व्यक्तिगत
कुंडलियां छंद
ताके ध्रुव-तारा अटल, संग वैद्य उदरेश |
धर डाक्टर राजेंद्र सह, पुरखे नाना वेश | 
पुरखे नाना वेश, अग्नि प्रज्वलित कराएं |
होता मंत्रोच्चार, सात फेरे लगवायें | 
वर-वधु को आशीष, रहे दे, अपने आके | 
होय अटल अहिवात, अटल ध्रुवतारा ताके |

हरिगीतिका 
सद्ज्ञान-विद्या धाम शुभ,परिवेश नैसर्गिक छटा |
सद्भावनामय जौनपुर की मेघदूती शुभ घटा |
अरविन्द संध्या की सुता-सौभाग्य प्रियषा कौमुदी |
जय जय चिरंजीवी सुमित, शुभ पंचमी अगहन सुदी ||

वर पक्ष
शशिधर ने शशि को सौंप दिया।
खिल जाता लक्ष्मीकान्त हिया।
उस क्षीरजलधि की हलचल ने
तब सुमित-अमितमय विश्व किया।।

विनीत/दर्शनाभिलाषी
कमला दशरथ रविशंकर सौरभ कौस्तुभ अम्बुज संग पधारे |
सनतोष सरोज मनोज सुनील बृजेश शुभम अरु वैभव द्वारे |
लछमी ऊंकार ऋषभ दिवयांश विवेक ललित सुरयांश निहारे| 
अब अंकित आयुषमान विपुल मिसरा कुल के परिजन गण सारे

नाना पक्ष
विद्यासागर शुक्ल जी, इंद्रा जी के साथ।
नातिन के शुभ व्याह में, दिखे बँटाते हाथ।
दिखे बँटाते हाथ, साथ आशीष दे रहे।
राघवेंद्र देवेन्द्र, बलैया साथ ले रहे।
संग हरेंद्र रमेंद्र, प्राप्त होता शुभ अवसर।
देते सब आशीष, महात्मन विद्या सागर।।

शशिकांत राधाकांत मौसा भी उपस्थित हैं यहाँ।
ढोलक बजाने मे मगन हीरावती दादी जहाँ।
नानी जमा चाची जमा मौसी बुआ मामी सभी
वर पक्ष को अतिप्रेम से गाली सुनाती हैं वहाँ।।

2 comments:

  1. सात फेरों के सातों वचन.....
    वाह!!!
    बहुत ही लाजवाब....

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  2. वाह बहुतबहुत खूब

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