08 July, 2019

कुछ व्यंजनों के प्राण निकलें, सुन स्वरों की व्यंजना-

बाधाओं से क्यों डरे, रे जिंदा इन्सान।
अर्थी के पथपर कभी, आते क्या व्यवधान ??

जब चोट जिभ्या पर लगे, उपचार क्या करना अहो।
वह खुद-ब-खुद ही ठीक होगी, बस जरा पीड़ा सहो।
यदि चोट जिभ्या से लगे, उपचार ही कोई नहीं-
बस पीर प्राणान्तक सहो, सहते रहो कुछ मत कहो।।

😊😊
बी पी अनिद्रा चिड़चिड़ापन, और बेचैनी अगर।
दो बार सिर से हाँ करो, अर्धांगिनी की बात पर।
दायें नहीं बाएं नहीं मुंडी हिलाना तुम कभी-
सबसे बड़ा योगा यही, घर मे नियम से रोज कर।।
😊😊
कांता रखे आराम से सिर वक्ष पर एकांत में।
मेरे सिवा वह कौन नारी रुचि रखे जो आपमें।
बेशक प्रत्युत्तर है सही कोई नही कोई नही-
पर कर न दे चुगली मियाँ, दिल की बढ़ी धड़कन कहीं।

मुस्कुराहट में छुपे हर दर्द को पहचानता।
रोष के पीछे छुपे उस प्यार को भी जानता।
मौन का कारण पता है, किन्तु कैसे बोल दूँ।
आ रही आड़े हमारे बीच की असमानता।।

जरूरत कभी भी न पूरी हुई, सदा नींद भी तो अधूरी हुई।
अरी मौत तेरा करूँ शुक्रिया, जरूरत खतम नींद पूरी हुई।।

सुगर अवसाद प्रेसर का, बता अंजाम क्या होगा।
लगाई पंक्ति प्रातः ही, मगर डॉक्टर करे योगा-
दवा की लिस्ट लम्बी सी, दिया फिर चार सौ लेकर-
बदल ली किन्तु दिनचर्या, तिलांजलि लिस्ट को देकर।।

नशे में बुद्धिजीवी सब, दलाली मीडिया करता।
मदान्धी हो रही सत्ता, कुकर्मी कब कहाँ डरता।
तमाशा देखती जनता, नपुंसक हो चुकी अब तो-
अगर है जागरुक कोई, वहाँ भी आह वह भरता।।

कुछ व्यंजनों के प्राण निकलें, सुन स्वरों की व्यंजना।
अभिव्यंजना की हर समय, मात्रा करे आलोचना।
मात्रा लवण की यदि उचित तो स्वाद व्यंजन का बढ़े-
रख वाक्य में मात्रा उचित, कवि मन्त्र देते है बना।।

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